Skip to main content

जानिए गिलहरी के बारे में...

पेड़ पर रहने वाली प्यारी गिलहरी

Squirrel


गिलहरी मुख्य रूप से भारतीय उपमहाद्विपीय तथा एशिया, यूरोप और उत्तरी अमेरिका में बहुत अधिकता में पाई जाती है। इस गिलहरी की अन्य पांच प्रजातियां भी देश में पाई जाती हैं, जो महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश, गुजरात, झारखंड और तमिलनाडु में मिलती है। 

गिलहरी का वजन लगभग दो से ढाई किलो तक हो सकता है। 

गिलहरी की पूंछ की लंबाई दो फीट और शरीर लगभग 36 सेमी तक होता है। 

दुम (पूंछ) घने और मुलायम रोयों से ढंकी होती है। 

गिलहरी 2-3 रंगों से रंगीन होती है, उसका सिर भूरा अथवा कत्थई कलर का होता है। बाकी शरीर हल्का लाल अथवा काले कलर का हो सकता है। 
गिलहरी के पैर सामान्यत: क्रीमी रंग के होते है। 

यह पेड़ों पर 2 से 4 फीट तक छलांग लगा सकती है। 
गिलहरी अपने पिछले पैरों के सहारे बैठकर अगले पैरों से हाथों की तरह काम लेती है।

गिलहरी के कान लबे और नुकीले होते हैं। 

गिलहरी पेड़ों पर काफी ऊंचाई पर घोसले बनाकर निवास करती है। 

इसके सबसे ज्यादा मिलने का समय सुबह-सुबह और शाम के कुछ घंटे है। 

गिलहरी बहुतयात पेड़ों में रहने वाली और दिन-रात दोनों समय में विचरण करने वाली सर्वाहारी प्रजाति की है।

गिलहरी बहुत चंचल होती है और बड़ी सरलता से पाली जा सकती है।

यह एक छोटी आकृति की जानवर है। 

अब यह प्रजाति विलुप्ति के कगार पर हैं। 

Comments

Popular posts from this blog

आविष्कार

पहिया लकड़ी के पहिये का आविष्कार सबसे पहले मेसोपोटामिया (आधुनिक ईराक) में हुआ था। ईसा से ३५०० वर्ष पहले इस पहिये को लकड़ी के कई तख्तों से जोड़कर बनाया गया था।

बूढ़ा पिता

किसी गाँव में एक बूढ़ा व्यक्ति अपने बेटे और बहु के साथ रहता था । परिवार सुखी संपन्न था किसी तरह की कोई परेशानी नहीं थी । बूढ़ा बाप जो किसी समय अच्छा खासा नौजवान था आज बुढ़ापे से हार गया था, चलते समय लड़खड़ाता था लाठी की जरुरत पड़ने लगी, चेहरा झुर्रियों से भर चूका था बस अपना जीवन किसी तरह व्यतीत कर रहा था।