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प्यारे पिताजी

कहानी का प्रथम अंश
सब्जी बनाने से पहले झींगी के दो टुकड़े कर छुरी की नोक से उसका जरा सा गुदा निकाल बिपुल की मां ने मुंह में डालकर चख लिया। कहीं झींगी कड़वी तो नहीं। झींगी और तोरी की कुछ प्रजातियां इतनी कड़वी होती हैं कि अगर सब्जी में पड़ जायें तो पूरी सब्जी कड़वी हो जाती है।

इस कारण बिपुल की मां झींगी या तोरी की सब्जी बनाने के पहले उसे जरूर चख लेती है।
झीगी कड़वी न थी। इसलिए वह छुरी से उसका छिलका उतारने लगी। तभी चुल्हे की ओर से ‘सों सों’ की आवाज आयी। दूध उफन रहा था। उफन कर जरा सा दूध तो पतीली के किनारे से गिरने भी लगा था। तुरंत झींगी और छुरी एक ओर फेंक, वह चुल्हे की ओर दौड़ी।
लकड़ी से जलने वाले चुल्हे के पास मिट्टी के तेल का एक स्टोव भी था। उसी स्टोव पर उबलने के लिए उसने दूध चढ़ा दिया था। लकड़ी से जलने वाले दोहरे चुल्हे की एक तरफ चढ़ी दाल उफनने लगी थी।
उसने कड़छी से फेन का कुछ हिस्सा निकालकर फेंक दिया। फिर सब्जी काटने बैठ गयी।
आमतौर पर बिपुल की मां घर का सारा कामकाज सिलसिलेवार ढंग से ही किया करती है। पर कभी कभी किसी एक काम में लगे रहने पर दूसरे किसी काम में कुछ गड़बड़ी हो ही जाती है। झींगी काटने के समय से ही वह सोच रही थी कि बिपुल को तो झींगी की तरकारी पसंद ही नहीं। उसके लिए कौन सी तरकारी बनाए। एक अंडा है। क्या उसे ही तल दे। मगर वैसा करना भी तो मुश्किल है। रानी, रिनी, मुकुल को भी तो अंडा पसंद है। तब भला इन सबके सामने वह अकेले बिपुल को ही पूरा अंडा कैसे दे सकेगी। उसने सोचा, एक काम किया जाये तो कैसा रहे। दो आलुओं को महीन महीन कतर कर उसमें अंडा मिलाकर आलू भूजिया बना लिया जाए। उसका ज्यादा हिस्सा बिपुल को देकर थोड़ा थोड़ा दूसरों को भी दे देगी।

वह इसी उधेड़बुन में थी कि उधर दूध में उबाल आ गया था। उसने फिर छुरी हाथ में उठायी ही थी कि तभी कोई बात याद आ गयी। वह रसोईघर से निकल कर बड़े कमरे में गयी। अंदर रानी पढ़ रही थी। मुकुल अपनी पैंट हाथ में लिये उसमें फंसे कंटीले घास के बीज चुनकर निकाल रहा था। वह मुकुल की पहली पैंट थी। उसे पहन कर वह मोहन के घर के पास के खुले मैदान के बीचोंबीच निकलता तो कंटीली घास के बीज हमेशा पैंट में लग जाते। अवसर मिलते ही वह बैठकर उन्हें निकाला करता।
उसके पास से गुजरते हुए मां बोली, “अरे, अभी क्या यह सब करने का वक्त है। तू पढ़ता क्यों नहीं। स्कूल का ‘होम वर्क’ कर चुका क्या।” मुकुल जानता है, पास से गुजरने पर मां कुछ न कुछ जरूर कहती है। उसने बात का कोई जवाब नहीं दिया।
अब वह बड़े बेटे बिपुल के पास पहुंची। वह तब तक सोया ही था। कुछ पहले उसे जगाने के लिए मां ने मच्छरदानी खोल दी थी। कई बार पुकारने पर वह कह उठा था ‘ठहर ठहर न उठ रहा हूं न।‘ इस बीच मां और रानी ने मिलकर सूजी भूनी, हलवा बनाया, चाय बनायी। सबने नाश्ता भी कर लिया। बिपुल के हिस्से का हलवा ढ़क कर मां रसोई बनाने में जुट गयी और सभी अपनी अपनी मेज पर चले गये। उसके काफी देर बाद मां फिर बिपुल को देखने आयी। वह तब तक भी नहीं उठा था। पहले तो वह पैर फैलाये पेट के बल सोया हुआ था। अब दीवार की ओर मुंह किये, हाथ पैर सिकोड़े सोया पड़ा था।
“ओ बिपुल, बिपुल बेटे। आठ बज रहे हैं। उठता क्यों नहीं तू।”
बिपुल चुपचाप पड़ा रहा।
मां ने और ऊंची आवाज में पुकारा, “बिपुल, ओ बिपुल।”
“हूं।” बिपुल भारी सी आवाज में बोला। “कितना पहले जगा गयी थी मैं। फिर सो क्यो गया। दिन चढ आया है देखता नहीं। अरे तू उठता क्यों नहीं बिपुल।“
फिर मां ने अपनी आवाज को और कोमल बनाते हुए कहा, “अब उठ जा, उठ जा मेरे लाल।”
बिपुल ने तुनककर कहा, “उठ रहा हूं न।” मां ने कोमल आवाज में ही कहा, “कब उठेगा तू। स्कूल जाने का वक्त हो गया है।”
बिपुल ने और ऊंची आवाज में कहा, “मेरा जब मन होगा, उठूंगा। चीख पुकार क्यों मचा रखी है।”
मां कुछ देर बिपुल की पीठ की ओर देखती खड़ी रही। फिर चुपचाप कमरे से निकल गयी। बिपुल जब वैसे लहजे में बात करने लगता, तो उससे फिर कुछ कहने की हिम्मत नहीं होती। कुछ करने पर वह फिर कौन सा रूप धारण कर लें, कौन जाने। मां फिर जाकर रसोईघर के कामों में जुट गयी। सुबह सुबह उसे काम क्या कम रहता है। रसोई बनाकर लड़के लड़कियों को खिला पिलाकर स्कूल भेजना होता है। फिर स्कूल के आधे घण्टे के विराम में खाने के लिए डिब्बे में जलपान की चीजें भी मुकुल को देनी होती हैं।
बिपुल के पिता वहां से दूर नौकरी पर हैं। बिपुल बड़ा बेटा है, रानी, रिनी लड़कियां हैं, मुकुल छोटा बेटा है। इन सबकी देखरेख उसे ही करनी पड़ती है।
कुछ देर बाद रानी उठी और एक गीत की कड़ी गुनगुनाते हुए उसने जाकर नहा लिया। स्नानघर से निकलते ही रिनी बोली “मुकुल, तू जाकर पहले नहा ले, फिर मैं नहाऊंगी।”
मुकुल बोला, “आज तो मैं नहीं नहाऊंगा, हाथ, मुंह धो लूंगा।“ रिनी तुरंत पिछवाड़े के दरवाजे से निकल मां को पुकारने लगी, “मां, मां ”। सुनती हो, मुकुल कह रहा है कि वह आज नहीं नहायेगा।”
मां कड़ाही में तेल और मसाला डाल उसे कड़छी से चला रही थी। बोली, “नहायेगा क्यो नहीं, जरूर नहाना होगा उसे। मगर रिनी, देख तो जरा, बिपुल उठा या नहीं।”
“उठ तो गया है।”
“क्या कह रहा है फिर। क्या हलवा खाने नहीं आयेगा।”
“बिपुल तो उठते ही सड़क की ओर निकल गया।”
“निकल गया। सुबह सुबह कहां निकल गया।”
छोटी पतीली की दाल को छौंकने के लिए भुन रहे मसाले वाली कड़ाही में उंडेल, जरा से पानी से जल्दी जल्दी पतीली को उसने खंगाला और उस पानी को भी दाल में डाल कड़छी से कुछ देर चलाने के वाद आंचल के सिरे से हाथ पोंछती। वह बाहर आ गयी।
“बिपुल कहां निकल गया, रानी।“ रानी के पास जाकर उसने पूछा।
रानी कंघी से बाल संवार रही थी। बोली, “मुझे क्या पता। वह कहां जाता है, क्या कभी हमें बताकर जाता है। गया होगर उसी गुमटी की ओर।“
“च.. स्कूल जाने का वक्त हो गया और… “मां सामने के बरामदे में निकल आयी। उसने गर्दन ऊंची करके, नजरे जहां तक जाती थीं, ध्यान से देखा। फिर बरामदे के खंभे को पकड़े, खड़ी रही।
“ओह पता नहीं यह लड़का जाने और कितनी तकलीफे देगा।“ वह बड़बड़ाने लगी, “और कितना जलायेगा।“ उसे लगा, उसका सिर गर्म हो आया है।
कुछ देर बाद उसने देखा, सड़क पर बुबुल नाम का लड़का कहीं जा रहा है। उसने ऊंची आवाज में पुकारा, “बुबुल, बुबुल, तुम क्या चौक की तरफ जा रहे हो।”
“जी हां, चाची।“ बुबुल बोला।
“जरा देखना तो बेटे, उधर हमारा बिपुल कहीं दिखाई पड़ता है या नहीं। वह मिल जाये तो कहना, मैं बुला रही हूं।”
“ठीक है, चाची, कह दूंगा।“ कहता हुआ बुबूल आगे बढ़ गया।
कुछ देर वहां रूके रहने के बाद गंभीर चेहरा लिए अंदर आ बिपुल की मेज के सामने वह कुछ देर खड़ी रही। फिर रानी से कहा, “रानी, बिटिया, तू एक काम कर देगी क्या।”
“कौन सा काम।”
“वह तो न जाने कहां निकल गया। कब लौटे, पता नहीं। खैर भले ही नहाये धोये नहीं, पर कुछ खा पीकर स्कूल तो जाये। उसका टाइम टेबल देखकर क्या तू उसकी किताबें कापियां जरा लगा देगी।”
रानी समझ गयी, इस बिपुल की वजह से मां का दिल बिलकुल टूट गया है। मां की ऐसी हालत देख उसे खुद भी बुरा लगता है। उदास मुरझाई हुई मां का दिल कुछ तो बहल जाये, यही सोच वह मां के कहे मुताबिक काम कर दिया करती है।
जल्दी जल्दी अपने बाल संवार कर, और अपनी किताबें कापियां सहेजने के बाद रानी बिपुल की मेज के पास गयी। कहां है उसका टाइम टेबल। कई किताबें कांपियां उलटने पलटने के बाद आखिर वह दिखाई पड़ा। एक कापी के पिछले पन्ने पर टाइम टेबल लिखा है। उस कापी के कवर की ऐसी खस्ता हालत थी कि क्या कहना। बड़ी मुश्किल से पढ़ा जा सकता था। बुधवार गणित, अंग्रेजी, भूगोल।
उसकी गणित की पुस्तक, गणित की कापी। कहां हैं… उसकी किसी कापी पर कवर नहीं था, न किसी पर नाम का कोई लेबल ही था। एक कापी पर गणित के सवाल हल करने के कुछ चिह्न हैं। यानी गणित का सवाल हल करने के नाम पर कुछ लिख कर काटा पीटा गया था और उसके पिछले पन्ने पर कोई गीत लिखा था ‘महबूबा… महबूबा‘।
काफी मगजपच्ची और मेहनत करके रानी ने पन्ने उलट पलट कर कुछ कापियों और कुछ किताबों को सहेज दिया। वह इस बात का सही अंदाजा भी नहीं सकी थी कि वे किताबें कापियां उस दिन के टाइम टेबल के अनुसार है भी या नहीं। अनुमान से ही वह काम पूरा कर ‘मां मुझे खाना दे दे’ कहती हुई रसोईघर में चली गयी।
मुकुल तो पड़ोसी गजेन के भाई रमेन के साथ रिक्शे पर स्कूल जाता था। दोनों के परिवार वाले मिलकर रिक्शा किराये का आधा आधा दे दिया करते थे। रिक्शा आया और मुकुल स्कूल चला गया।
बाहर से शेवाली और मान्ना की पुकार आती तो रीनी उनके साथ निकल जाती। फिर पास पड़ोस के और तीन परिवारों की लड़कियों सोफिया, कावेरी और झिलमिल भी उनके साथ हो जाया करतीं। शेबाली ओर मान्ना जैसे ही आयीं, रिनी भी निकल गयी।
लेकिन रानी अपने से छोटी इन चुलबुली लड़कियों के साथ स्कूल नहीं जाती। उसकी सहेली मृणालिनी पके संतरे के रंग की छतरी लिये आती। रानी उसी के साथ स्कूल जाया करती। हालांकि कभी कभी मृणालिनी के न आने पर लाचारी में उन्हीं छोटी लड़कियों के साथ जाना पड़ता। उस दिन भी तैयार हो वह मृणालिनी का इंतजार कर रही थी, तभी बिपुल ने घर में आते ही गंभीर आवाज में हुक्म दिया, “एक गिलास पानी दे।”
रानी स्टील के एक गिलास में पानी ले आयी। उसके पीछे पीछे आकर मां ने पूछा, “क्यों रे, क्या तुझे स्कूल नहीं जाना।”
बिपुल पानी का गिलास हाथ में ले अपनी मेज के पास गया और खड़ा हो पानी पीने लगा। मां के सवाल का उसने कोई जवाव नहीं दिया।
मां ने फिर पूछा, “बिस्तर से उठते ही कहां चला गया तू।”
बिपुल कुछ कहे बगैर पानी पीता रहा।
मां बोली, “चल, अब जल्दी से तैयार हो जा। साइकिल से जाने पर समय से स्कूल पहुंच जायेगा।”
“मैं स्कूल नहीं जाऊंगा।” पानी पी चुकने के बाद बिपुल ने भारी आवाज में कहा।
“आखिर क्यों।” मां की आंखें फैली रह गयीं। बिपुल पानी का गिलास मेज पर रखना चाहता था, पर सहसा रूक गया। उसने अचानक चीखते हुए पूछा, “मेरी मेज को किस ने हाथ लगाया था।”
मां के साथ साथ रानी भी चौंक उठी। मां ने कहा, “आज की तेरी किताबें कापियां रानी ने ही सहेज कर रख दी हैं। सोचा था, तेरे स्कूल जाने में कहीं देर न हो जाये। इसी कारण …।”
“मेरी किताबों कापियों को तूने कैसे छुआ।” बिपुल ने जोर से चीखते हुए गिलास को रानी की ओर फेंक कर मारा। रानी ने तुरंत गर्दन को एक ओर झुका लिया। ‘टन्न’ की आवाज के साथ ही गिलास पास की दीवार से जा टकराया।
क्षण भर के लिए मां की आंखें गुस्से से लाल हो उठीं। दांत पीसते हुए वह चीख पड़ी, “राक्षस तो नहीं हो गया तू।”
“हां, हां, मैं राक्षस ही हूं। इसने मेरी मेज को हाथ क्यों लगाया।“ कहते कहते बिपुल ने मेजपोश का एक कोना पकड़ जोर से खींच दिया, जिससे मेज की सारी चीजें छिटक कर जमीन पर गिरकर बिखर गयीं।
रानी ने सहमी नजरों से मां की ओर देखा। मानों उसकी आंखें मां से विनती कर रही हों, ‘मां, अब तू कुछ मत कह।’
उसे डर था कि मां के कुछ और कहने पर बिपुल न जाने क्या कर बैठे। ऐसी स्थिति में मां को बिपुल के पास अकेले छोड़े जाने में भी रानी को बड़ा डर लगता था।
स्कूल जाते वक्त उस दिन मृणालिनी रास्ते में उससे कहने वाली थी। ‘उस बात से कोई नया रहस्य खुलेगा’ सोचकर वह भी बड़ी खुश थी।
कुछ देर बाद उसने खिड़की से देखा मृणालिनी आ रही है। वह बाहर दरवाजे तक निकल गयी। धीमी आवाज में उसने कहा, “आज मैं स्कूल नहीं जा रही।“
“मगर क्यों।“ अचरज से मृणालिनी ने पूछा।
“उस पर फिर शैतान सवार हो गया है।” टूटी सी आवाज में इतना कहकर रानी ने सिर झुका लिया।
मृणालिनी को बात तुरन्त समझ आ गयी। बिपुल के बारे में रानी से पहले ही वह बहुत कुछ सुन चुकी थी।
कुछ और कहे बगैर मृणालिनी ने तेजी से कदम बढ़ा दिये। उसे आगे जाने वाली किसी सहेली के साथ होना होगा, क्योंकि स्कूल दूर था। भला इतनी दूर वह अकेले कैसे जा सकती है… 

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