स्वामी और उसके दोस्त का प्रथम अंश
सोमवार की सुबह थी। स्वामीनाथन की आंखे खोलने की इच्छा नहीं हो रही थी। सोमवार उसे कैलेंडर का सबसे मनहूस दिन लगता था। शनिवार और रविवार की
मज़ेदार आजादी के बाद सोमवार को काम और अनुशासन के मूड़ में आना बहुत मुश्किल होता था।
स्कूल के विचार से ही उसे झुरझुरी आ गयी वह पीली मनहूस बिल्डिंग जलती आंखों वाला कक्षा अध्यापक वेदनायकम और पतली लंबी छड़ी हाथ में लिए हैडमास्टर।
आठ बजे तक वह अपने ‘कमरे’ में डेस्क पर विराजमान था। कमरा यानी पिता के ड्रेसिंग रूम का एक कोना यहीं उसकी मेज थी, जिस पर उसकी सभी चीजें, कोट, टोपी, स्लेट, दवात और किताबें अस्तव्यस्त पड़ी थी।
स्टूल पर बैठकर उसने आंखे बंद कर लीं और याद करने लगा कि आज उसे क्या काम करना है। सबसे पहले गणित पांच सवाल लाभ हानि के, फिर अंग्रेजी आठवें पाठ के एक पृष्ठ को कापी पर लिखना, कठिन शब्दों के शब्दकोश से अर्थ लिखना, और फिर भूगोल। और उसके पास हैं सिर्फ दो घण्टे, जिनमें उसे यह ढेर सारा काम करना है और फिर स्कूल के लिए तैयार भी होना है।
जलती आंखों वाले अध्यापक वेदनायकम कक्षा में लंबी खिड़की की तरफ पीठ किए बैठे थे। उसकी सलाखों से खेल के मैदान का कुछ भाग और शिशु कक्षाओं के बरामदे का कोना दिखाई देता था। बाईं ओर बड़ी बड़ी खिड़कियां थी, जिनमें विस्तृत खुला मैदान दिखाई देता था। मैदान से दूसरे छोर पर रेलवे पुल था।
स्वामीनाथन का कक्षा में सिर्फ इसलिए अस्तित्व था कि वह वहां से छोटे बच्चों को एक दूसरे पर गिरते पड़ते देख सकता था और बाईं ओर की खिड़कियों से साढ़े बारह बजे की डाकगाड़ी को सरयू पुल के ऊपर से खड़खड़ करते निकलते देख सकता था।
स्वामीनाथन का कक्षा में सिर्फ इसलिए अस्तित्व था कि वह वहां से छोटे बच्चों को एक दूसरे पर गिरते पड़ते देख सकता था और बाईं ओर की खिड़कियों से साढ़े बारह बजे की डाकगाड़ी को सरयू पुल के ऊपर से खड़खड़ करते निकलते देख सकता था।
पहली घंटी शांति से बीत गयी। दूसरी गणित की थी। वेदनायकम बाहर गये और कुछ ही मिनट में गणित के अध्यापक के रूप में फिर आ गये। वे एक ही स्वर में भिनभिनाते रहे। स्वामीनाथन के लिए यह बेहद ऊबाऊ था। अध्यापक की आवाज़ से चिढ़ हो रही थी। उसे नींद आने लगी।
अध्यापक ने होमवर्क की कांपिया दिखाने के लिए कहा। स्वामीनाथन अपनी जगह से उठा, छलांग मारकर प्लेटफार्म पर चढ़ा और अपनी कापी मेज पर रख दी। जब अध्यापक सवाल देख रहे थे, स्वामीनाथन उनके चेहरे को गौर से देख रहा था, जो उसे निकट से देखने पर बहुत भोला लगा। अध्यापक के चेहरे के संबंध में स्वामीनाथन का कहना था कि उनकी दोनों आंखें एक दूसरे के बेहद करीब है, उनकी ठोड़ी पर जितने दूर बेंच से बाल दिखाई देते हैं, उससे कहीं ज्यादा हैं और उनकी शक्ल बहुत ही भद्दी है।
उसकी तंद्रा तब टुटी जब उसे कोहनी से ऊपर नरम मांस में तेज दर्द हुआ। अध्यापक एक हाथ से चुटकी काट रहे थे और दूसरे से सारे सवालों पर काटा लगा रहे थे। पृष्ठ के नीचे उन्होंने ‘वैरी बैड’ लिखा। कापी स्वामीनाथन के मुंह पर दे मारी और उसे वापस सीट पर भेज दिया।
अगली घंटी इतिहास की थी। लड़के बड़ी उत्सूकता से उसकी प्रतीक्षा करते थे। इतिहास डी. पिल्ले पढ़ाते थे, जो स्कूल में नरम व्यवहार तथा हंसी मजाक के लिए प्रसिद्ध थे। उनकी प्रसिद्धि इस बात के लिए थी कि उन्होंने लड़कों से कभी गुस्से गाली से भरा व्यवहार नहीं किया। इतिहास पढ़ाने की उनकी शैली शिक्षा के किसी भी मापदंड के अंतर्गत नहीं आती थी। वे वास्को डी गामा, क्लाइव हेस्टिंग्ज और अन्य लोगों के निजी जीवन की ढेर सी जानकारी लड़कों को देते थे। जब इतिहास की बड़ी लड़ाइयों का वर्णन करते थे, तो हथियारों के टकराने की आवाज़े और मरनेवालों की कराहें भी सुनाई देने लगती थीं। जब कभी हैडमास्टर निरीक्षण के लिए दबे पांव बरामदे में आते तो उन्हें इतिहास के अध्यापक से बहुत निराशा होती थी।
सुबह के सत्र में धर्म शिक्षा का पीरियड अंतिम होता था। यह इतना उबाऊ नहीं होता था। कई बार ऐसे अवसर आते थे, जब दिल को हिला देने वाली झांकी सामने उपस्थित हो जाती थीः लाल सागर में दरार पड़ना और इज़ाइलियों के लिए रास्ता बन जाना, सैक्सन के कारनामें, ईसा मसीह का कब्र से जीवंत उठना आदि। एक ही समस्या थी और वह यह कि धर्म शिक्षा के अध्यापक श्री एब्नेजर बहुत कट्टर थे। एक बार मुट्ठियां भींचकर उन्होंने कहा “मूर्खों तुम गंदी, बेजान लकड़ी पत्थर की मूर्तिया क्यों पूजते हो, क्या ये बोल सकती हैं… नहीं। देख सकती हैं… नहीं। क्या वे वरदान दे सकती हैं… नहीं। क्या तुम्हें स्वर्ग ले जा सकती हैं… नहीं। क्योंकि ये बेजान हैं। तुम्हारे देवताओं ने क्या किया जब महमूद गजनी ने उनकी मूर्तियों के टुकड़े टुकड़े करके उन्हें पांव तले रौंदा, उनसे अपने शौचालय के लिए सीढ़िया बनवायीं। अगर मूर्तिया जीवित थीं तो उन्होंने महमूद के आक्रमण को क्यों नहीं रोका।
इसके बाद वह ईसाई धर्म पर आये “हमारे ईसा मसीह को देखो। वे बीमारों को ठीक कर सकते हैं, निर्धनों के दुख दूर कर सकते हैं और हमें स्वर्ग ले जा सकते हैं। वही असली भगवान हैं। उस पर विश्वास करो, वह तुम्हें स्वर्ग ले जाएगा। स्वर्ग का राज्य हमारे दिलों में है।” जब अध्यापक एब्नेजर अपने सामने ईसा मसीह की कल्पना करते थे, तो उनकी आंखों से आंसू झरने लगते थे। दूसरे ही क्षण कृष्ण की याद करके उनका चेहरा गुस्से से लाल हो उठता था “क्या हमारा ईसा मसीह तुम्हारे कृष्ण की तरह नाचने वाली लड़कियों से साथ आवारागर्दी करता था। क्या हमारा ईसा मसीह उस बदमाश कृष्ण की तरह मक्खन दही चुराता था। क्या हमारे ईसा मसीह ने अपने आसपास के लोगों पर काला जादू किया।
वे सांस लेने के लिए रूके। उस दिन वे असहनीय हो उठे। स्वामीनाथन का खून खौलने लगा। उसने उठकर पूछा “उन्होंने कुछ नहीं किया तो उन्हें सलीब पर क्यों चढ़ाया गया। “अध्यापक ने उसे बताया कि वह पीरियड के बाद उनके पास आये और अकेले में सारी बातें समझे। अगले दिन स्वामीनाथन स्कूल जल्दी पहुंच गया। घंटी लगने में अभी आधा घण्टा बाकी था। ऐसे अवसरों पर वह स्कूल भर में दौड़ता फिरता था। इमली के बड़े पेड़ के नीचे उसने अपने को अपराधी सा अनुभव किया।
रात के समय उसने पिताजी को अध्यापक एब्नेजर के बारे में बताया था। अब वह इस पर पछता रहा था और अपने को नंबर एक का गधा मान रहा था।
जैसे ही घण्टी बजी वह हैडमास्टर के कमरे में दाखिल हुआ और उन्हें वह पत्रा दे दिया। हैडमास्टर ने उसे पढ़ा तो उनका चेहरा गंभीर हो गया।
जैसे ही घण्टी बजी वह हैडमास्टर के कमरे में दाखिल हुआ और उन्हें वह पत्रा दे दिया। हैडमास्टर ने उसे पढ़ा तो उनका चेहरा गंभीर हो गया।
महोदय,
मैं आपको सूचित करना चाहता हूं कि मेरा लड़का स्वामीनाथन पहली फार्म के ‘ए’ सेक्शन में पढ़ता है। कल धर्म शिक्षा के अध्यापक ने धार्मिक आवेश में उसे चोट पहुंचायी। मूझे पता चला है कि वह अध्यापक हिन्दू धर्म के बारे में बात करते समय बहुत अपमान जनक और भड़काने वाली भाषा का प्रयोग करते हैं। इसका लड़कों पर निश्चय ही बुरा प्रभाव पड़ता है। इन मामलों में सहिष्णुता बरतने की जरूरत है पर में विस्तार से कुछ नहीं कहूंगा।
मुझे यह भी बताया गया है कि जब मेरे लड़के ने कुछ शंकाओं का समाधान करने के लिए कहा तो उसके साथ अध्यापक ने क्रूर व्यवहार किया। शाम को वह घर आया तब भी उसके कान लाल थे।
मैं आपको सूचित करना चाहता हूं कि मेरा लड़का स्वामीनाथन पहली फार्म के ‘ए’ सेक्शन में पढ़ता है। कल धर्म शिक्षा के अध्यापक ने धार्मिक आवेश में उसे चोट पहुंचायी। मूझे पता चला है कि वह अध्यापक हिन्दू धर्म के बारे में बात करते समय बहुत अपमान जनक और भड़काने वाली भाषा का प्रयोग करते हैं। इसका लड़कों पर निश्चय ही बुरा प्रभाव पड़ता है। इन मामलों में सहिष्णुता बरतने की जरूरत है पर में विस्तार से कुछ नहीं कहूंगा।
मुझे यह भी बताया गया है कि जब मेरे लड़के ने कुछ शंकाओं का समाधान करने के लिए कहा तो उसके साथ अध्यापक ने क्रूर व्यवहार किया। शाम को वह घर आया तब भी उसके कान लाल थे।
इससे मैं यह निष्कर्ष निकालता हूं कि आप अपने स्कूल में गैर ईसाई लड़कों को रखना नहीं चाहते। यदि ऐसा हो तो कृपया हमें सूचित करें। हम लड़कों को उस स्कूल से निकालकर दूसरी जगह भेजने को तैयार हैं। मैं आपको याद दिलाता हूं कि मालगुड़ी में एल्वर्ट मिशन स्कूल ही नहीं है। आशा है कि आप कृपा करके सारे मामले की जांच करेंगे।
आपका अत्यंत आज्ञाकारी सेवक,
डब्ल्यू टी. श्रीनिवासन
आपका अत्यंत आज्ञाकारी सेवक,
डब्ल्यू टी. श्रीनिवासन
जब स्वामीनाथन कमरे से बाहर आया तो सारा स्कूल उसके इर्दगिर्द जमा हो गया और उसके होंठों से निकलने वाले शब्दों को सुनने के लिए उत्सुक था। किंतु वह लड़कों के सवालों की बड़ी बेरूखी से उपेक्षा कर रहा था। उसने केवल चार लड़कों को विश्वास में लिया। इन चारों लड़कों को वह कक्षा में सबसे ज्यादा चाहता था और उनकी प्रशंसा करता था। एक तो था मानीटर सोमू जो हमेशा साहब बना रहता था। वह अपना काम चाहे वह जो भी हो, बड़े विश्वास और शांतभाव से करता था। वह अध्यापकों का भी प्रिय माना जाता था। कोई अध्यापक उससे कक्षा में सवाल नहीं पूंछता था। यह तो नहीं कहा जा सकता कि वह बहुत प्रतिभाशाली छात्रा था। ऐसा माना जाता था कि केवल हैडमास्टर ही उसे डांट सकता था। उसे कक्षा के चाचा की तरह ही माना जाता था।
दूसरा था मणि, जो ‘न काम का न काज का’ बाहूवली था। कक्षा के सब लड़कों पर उसका दबदबा था। वह न तो कभी किताबें लाता था और न होमवर्क की उसने कभी चिंता की थी। वह कक्षा में आता था, पिछली बेंच पर कब्जा करके बहादुरी के साथ सोता था। किसी अध्यापक ने उसे कभी छेड़ने की कोशिश नहीं की। कहा जाता है कि एक नये अध्यापक ने एक बार ऐसी कोशिश की थी, तो उसे लगभग जान से हाथ धोना पड़ा था। मणि सभी अजनबियों को तंग करता था, चाहे वे छोटे हों या बड़े। आमतौर पर लोग उसे आता देखकर एक तरफ हट जाते थे। सिर पर तिरछी टोपी लगाये और बगल में कोई तमिल उपन्यास दबाये वह तब से स्कूल आ रहा था, जब से स्कूल का बूढ़ा चपरासी याद कर सकता था। अधिकतर कक्षाओं में वह अपने साथियों की तुलना में अधिक समय तक रहता था। स्वामीनाथन को उसकी दोस्ती पर गर्व था। दूसरे लड़के उसके सामने डरकर दुबके रहते थे, लेकिन वह उसे मणि कहकर बुलाता था और दोस्ती से उसका पीठ थपथपा सकता था। स्वामीनाथन प्रशंसा भाव से भरकर उससे पूछता था कि उसे इतनी ताकत कहा से मिली। इस पर उसने बताया था कि उसके घर में लकड़ी के मुगदरों का एक जोड़ा है। उनसे वह उनकी कमर तोड़ सकता है, जो उससे उलझने का दुस्साहस करेंगे। तीसरा लड़का शंकर था, जो कक्षा का सबसे प्रतिभाशाली छात्र था। वह किसी भी सवाल को पांच मिनट में हल कर सकता था और हमेशा 90 प्रतिशत के आसपास अंक लेता था। लड़कों का एक वर्ग मानता था कि वह अध्यापकों से सवाल पूछने लगे, तो अध्यापक कहीं न टिके। कुछ दूसरे लड़के कहते थे कि शंकर ठस दिमाग का है और चापलूसी करके सवालों के जवाब पहले ही मालूम कर लेता है। कहा जाता था कि वह अध्यापकों के कपड़े धोकर 90 प्रतिशत अंक प्राप्त करता है। कक्षा के सामने वह अध्यापकों से अंग्रेजी में बात कर सकता था। वह दुनिया के सभी पर्वतों, देशों और नदियों के नाम जानता था। वह नींद में इतिहास सुना सकता था। व्याकरण तो उसके लिए बाएं हाथ का खेल था। उसका चेहरा प्रतिभा की कांति से दमकता रहता था। लेकिन उसकी नाक हमेशा गीली रहती थी और वह बालों की वेणी बांधकर तथा उसमें फूल लगाकर कक्षा में आता था। स्वामीनाथन उसे आश्चर्य भरी नज़रों से देखता था। वह उस समय बहुत खुश हुआ था, जब उसने मणि क समर्थन प्राप्त किया था और शंकर को अपनी मंडली में शामिल किया था। मणि उसे अपने ढ़ग से पसंद करता था और जब कभी वह अपना प्यार जताना चाहता वह शंकर की पीठ पर अपना भारी मुक्का दे मारता था। फिर सिर खुजला कर पूछता था, “अरे गधे तुम्हारी इस दुबली पतली काया में इतना दिमाग कहा से आया, क्या इसमें से कुछ दूसरों को नहीं दे सकते।
चौथा दोस्त था सैमूएल, जिसे उसके आकार के कारण ‘मटर’ कहा जाता था। उसमें कुछ भी असाधारण नहीं था। वह बिल्कुल साधारण लड़का था, जिसमें बाहुबल या बुद्धि की कोई विशेषता न थी। वह स्वामीनाथन की तरह ही गणित में फिसड्डी था। स्वामीनाथन की तरह ही वह डरपोक, कमजोर और जल्दी घबरा जाने वाला था। इन दोनों के बीच संबंध जोड़ने वाली थी हंसी। वे दोनों हर चीज में समान विसंगतियों और बेतुकापन देख सकते थे। दूसरों की नज़र में जो बहुत ही मामूली और न दिखाई देने वाली बात थी, उस पर हंसते हंसते उनके पेट में बल पड़ जाते थे।
जब स्वामीनाथन ने मित्रों को बताया कि उसके पिता ने धर्म शिक्षा के अध्यापक के मामले में क्या कारवाई की है, तो मित्रों ने अपनी सहमति जतायी। सोमू ने सबसे पहले अपने प्रशंसक के सामने खीसें निपोरकर उसका समर्थन किया। शंकर ने गंभीर होकर कहा “दूसरे कुछ भी कहें, तुमने पिताजी को इसकी जानकारी देकर ठीक ही किया।“ बाहुबली मणि ने अधमूंदी आंखों से कुछ बडबड़ाकर सहमति जताई। उसे केवल इस बात का दुख था कि यह मामला बड़ों पर छोड़ दिया गया था। उसे इसमें कोई तुक नहीं दिखाई दी। उसका विचार था कि इस तरह के मामले कक्षा की चारदीवारी में ही रहने चाहिए। अगर वह स्वामीनाथन की जगह होता, तो अध्यापक पर और कुछ नहीं तो कम से कम दवात मारकर शुरु में ही सारे मामले को खत्म कर देता। उसका मानना था कि स्वामी ने जो किया उसमें कोई बुराई नहीं है। अगर वह चुप रहता तो बहुत बुरा होता। लेकिन धर्म शिक्षा के अध्यापक को अपना ध्यान रखना होगा… मणि ने उसकी गर्दन मरोड़ने और कमर तोड़ने का फैसला कर लिया था।
सैमूएल उर्फ मटर ने अपने को बहुत ही परेशानी में पाया। एक तरफ उस पर कुछ कहने का दबाव पड़ रहा था, दूसरी तरफ ईसाई होने के कारण उसे अध्यापक एब्नेजर की बात में कुछ भी गलत नहीं लग रहा था, क्योंकि उसे लगता था कि उन्होंने जो कुछ कहा वह बाइबिल के आदेशों में से एक का विस्तार मात्र था। उसे एब्नेजर का पक्ष लेना चाहिए। उसने एब्नेजर की पोशाक और उसके हाव भाव पर टिप्पणी करके इस स्थिति से छुटकारा पा लिया।
कक्षा को इस मामले की भनक पड़ गयी। धर्म शिक्षा का पीरियड आया तो लड़के किसी नाटकीय घटना की प्रतीक्षा कर रहे थे। लेकिन हुआ कुछ भी नहीं। एब्नेजर हमेशा की तरह प्रसन्नचित दिखाई दिये। उस दिन उन्होंने भगवदगिता पर बोलने का निश्चय लिया और उस उदार रचना की कोई भी व्याख्या की जी सकती थी। एब्नेजर के हाथों में वह हिन्दू धर्म के खिलाफ एक हथियार था।
कक्षा को इस मामले की भनक पड़ गयी। धर्म शिक्षा का पीरियड आया तो लड़के किसी नाटकीय घटना की प्रतीक्षा कर रहे थे। लेकिन हुआ कुछ भी नहीं। एब्नेजर हमेशा की तरह प्रसन्नचित दिखाई दिये। उस दिन उन्होंने भगवदगिता पर बोलने का निश्चय लिया और उस उदार रचना की कोई भी व्याख्या की जी सकती थी। एब्नेजर के हाथों में वह हिन्दू धर्म के खिलाफ एक हथियार था।
उनकी आवाज हमेशा की तरह जोरदार थी, किंतु उनकी आलोचना विद्ध उनका ध्यान नहीं गया। तभी हैडमास्टर कमरे में आए।
एब्नेजर रुके। कुर्सी पीछे सरकाकर बेहद घबराये से खड़े हो गये। उन्होंने हैडमास्टर की तरफ प्रश्न की मुद्रा में देखा। हैडमास्टर ने गंभीर मुद्रा बनाये उन्हें भाषण जारी रखने को कहा। इस बीच एब्नेजर ने बंद बाइबिल के पृष्ठों के बीच अपनी उंगली फंसा ली थी। हैडमास्टर का आदेश पाकर उन्होंने मधुर बनने और क्रोध में तनी भौंहों को सहज बनाने की कोशिश की। फिर उन्होंने जहां उंगली थी वहीं से किताब खोली तथा जो सामने आया उसे पढ़ने लगे। यह ईसा के जन्म का प्रसंग था। महान घटना हुई थी। नांद में दिव्य शिशु था। पूर्व के बुद्धिमान लोग बड़ी आस्था से उस सितारे के पीछे चल रहे थे। लड़के हमेशा की तरह अनमने भाव से सुन रहे थे। एब्नेजर भगवदगीता के प्रकाश में हिंदू धर्म की व्याख्या करें या ईसा के जन्म का वर्णन करें, उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता था।
हैडमास्टर थोड़ी देर सुनते रहे और फिर नरम स्वर में उन्होंने स्पष्टीकरण मांगा। परीक्षा निकट थी और एब्नेजर अभी ईसा के जन्म से आगे नहीं बढ़े थे। वे ईसा के क्रास पर चढ़ने और पुनः प्रकट होने पर कब आयेंगे और कब दोहराना शुरू करेंगे। एब्नेजर हक्का बक्का थे। उन्हें कोई जवाब नहीं सूझा। उन्होंने यह कहकर बचने की कोशिश की कि सप्ताह के इस दिन वे पढ़ाये हुए को सरसरी तौर पर दोहराते हैं। नहीं, वे इतना पीछे नहीं हैं। वे ‘अंतिम भोज’ के आसपास पहुंच चुके हैं। उस दिन की पढ़ाई पूरी होने पर स्वामीनाथन को हैडमास्टर के कमरे में बुलाया गया। जब उसे हैडमास्टर की पर्ची मिली, तो उसकी इच्छा हुई कि वह घर भाग जाये। उसने मणि को अपनी बतायी, तो उसने पकड़ा और धकेलकर हैडमास्टर के कमरे तक ले गया। वहां उसे धक्का देकर हैडमास्टर के कमरे में ठेल दिया। स्वामीनाथन लड़खड़ाकर हैडमास्टर के सामने खड़ा हो गया।
एब्नेजर स्टूल पर बैठे हुए थे और डरे हुए लग रहे थे। हैडमास्टर ने पूछा, “क्या बात है, स्वामीनाथन।”
“कुछ नहीं, सर।” स्वामीनाथन ने कहा।
“कुछ नहीं, तो यह पत्रा क्यो।”
“ओह।” स्वामीनाथन के मुंह से अनायास निकला।
अध्यापक एब्नेजर ने मुस्कराने की कोशिश की। स्वामीनाथन इस सारे मामले से छुटकारा पाना चाहता था। उसे लगा कि एक सौ एब्नेजर भी हजार बार देवताओं के संबंध में बुरी बातें कहें, तब भी वह बुरा नहीं लगेगा।
“तुम जानते हो मैं यहां किसलिए हूं।” हैडमास्टर ने पूछा।
स्वामीनाथन ने इस पश्न के उत्तर में कहा “पता नहीं सर।” स्वामीनाथन ने भोलेपन से जवाब दिया।
“मैं यहां तुम्हारी देखभाल के लिए हूं।” हैडमास्टर ने कहा।
स्वामीनाथन को यह जानकर राहत मिली कि सवाल का जवाब इतना आसान था।
हैडमास्टर आगे बोले “इसलिए तुम्हें किसी मदद की जरूरत हो तो अपने पिता के पास जाने से पहले मेरे पास आओ।” स्वामीनाथन ने नजर बचाकर एब्नेजर की तरफ देखा, जो कुर्सी पर बैठे छटपटा रहे थे।
हैडमास्टर बोलते गये, “मुझे अफसोस है कि तुम इस मामूली सी बात को लेकर अपने पिता के पास गये। मैं इसकी जांच करूंगा। यह पत्रा अपने पिता को दे देना।”
स्वामीनाथन ने पत्रा लिया और राहत की सांस लेते हुए गोली की तरह कमरे से बाहर निकल गया।
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