साल 1989 की बात है। 35 साल का एक लड़का यूरोपियन ऑर्गेनाइजेशन फॉर न्यूक्लियर रिसर्च में बतौर फैलो काम करता था। इस संस्था को सर्न के नाम से जाना जाता है। उसका काम था एक कंप्यूटर सिस्टम की इंफोर्मेशन दूसरे पर भेजना।
इसी दौरान उसने एक ऐसे तरीके के बारे में सोचा, जिससे सारी इंफोर्मेशन एक ही जगह पर हो। बस फिर क्या था, इसी विषय पर ′इंफोर्मेशन मैनेजमेंट- ए प्रपोजल′ नाम से रिसर्च पेपर तैयार किया। इस रिसर्च का नतीजा था पहला वेब पेज ब्राउजर। आम भाषा में कहें, तो इसी के बाद इंटरनेट का जन्म हुआ।
इसके जन्मदाता के रूप में जाना गया उसी लड़के को, जिसका नाम है टिम बर्नर्स ली। अंग्रेज कंप्यूटर वैज्ञानिक टिम का यह योगदान तकनीक की दुनिया में बेहद अहम है।
कंप्यूटर इस्तेमाल करने पर रोक
8 जून 1955 को इंग्लैंड में टिम का जन्म हुआ था। टिम ने क्वींस कॉलेज, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की। ऑक्सफोर्ड में पढ़ाई के दौरान टिम को एक दोस्त के साथ हैकिंग करते पकड़ा गया था। इसके बाद उनके कॉलेज के कंप्यूटर इस्तेमाल करने पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
सुनने वालों को बेशक यह घटना नकारात्मक लगे, मगर इसका भी टिम ने अपने तरीके से लाभ ही लिया। उन्होंने एक टेलीविजन, एक मोटोरोला माइक्रोप्रोसेसर और सोल्डरिंग आयरन से खुद ही कंप्यूटर तैयार कर लिया।
इसी दौरान उसने एक ऐसे तरीके के बारे में सोचा, जिससे सारी इंफोर्मेशन एक ही जगह पर हो। बस फिर क्या था, इसी विषय पर ′इंफोर्मेशन मैनेजमेंट- ए प्रपोजल′ नाम से रिसर्च पेपर तैयार किया। इस रिसर्च का नतीजा था पहला वेब पेज ब्राउजर। आम भाषा में कहें, तो इसी के बाद इंटरनेट का जन्म हुआ।
इसके जन्मदाता के रूप में जाना गया उसी लड़के को, जिसका नाम है टिम बर्नर्स ली। अंग्रेज कंप्यूटर वैज्ञानिक टिम का यह योगदान तकनीक की दुनिया में बेहद अहम है।
कंप्यूटर इस्तेमाल करने पर रोक
8 जून 1955 को इंग्लैंड में टिम का जन्म हुआ था। टिम ने क्वींस कॉलेज, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की। ऑक्सफोर्ड में पढ़ाई के दौरान टिम को एक दोस्त के साथ हैकिंग करते पकड़ा गया था। इसके बाद उनके कॉलेज के कंप्यूटर इस्तेमाल करने पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
सुनने वालों को बेशक यह घटना नकारात्मक लगे, मगर इसका भी टिम ने अपने तरीके से लाभ ही लिया। उन्होंने एक टेलीविजन, एक मोटोरोला माइक्रोप्रोसेसर और सोल्डरिंग आयरन से खुद ही कंप्यूटर तैयार कर लिया।
पहली वेबसाइट
1989 में जिस वर्ल्ड वाइड वेब का जन्म हुआ उसकी तैयारी काफी पहले शुरू हो गई थी। सन् 1980 में जेनेवा स्थित सर्न के दफ्तर में काम करने के दौरान टिम ने पहली बार ग्लोबल सिस्टम का कॉन्सेप्ट पेश किया, जो हाइपरटेक्स्ट पर आधारित था।
इसकी मदद से कहीं भी बैठकर शोधकर्ता सूचना साझा कर सकते थे। इसके बाद 1989 में टिम ने ′इंफोर्मेशन मैनेजमेंट- ए प्रपोजल′ नाम से रिसर्च पेपर लिखा। इसमें उन्होंने हाइपरटेक्स्ट और इंटरनेट को एक साथ जोड़ दिया। इससे सर्न का कम्यूनिकेशन सिस्टम बेहतर बनाने में मदद मिली। मगर टिम का सोचना था कि इस सिस्टम का इस्तेमाल पूरी दुनिया में किया जा सकता है।
1990 में उन्होंने हाइपरटेक्स्ट के जरिये सूचना को अलग-अलग तरह के वेबकेंद्रो से जोड़ने और एक्सेस करने का प्रस्ताव रखा। 1991 में उन्होंने दुनिया की पहली वेबसाइट http://info.cern.ch लॉन्च की। इस पर वर्ल्ड वाइड वेब कांसेप्ट के बारे में पूरी जानकारी दी गई थी, जिससे कोई भी यूजर अपनी वेबसाइट शुरू कर सकता था। टिन बर्नर्स ली को HTML, URL, HTTP जैसी तकनीकों के फंडामेंटल लिखने का श्रेय भी जाता है।
इसकी मदद से कहीं भी बैठकर शोधकर्ता सूचना साझा कर सकते थे। इसके बाद 1989 में टिम ने ′इंफोर्मेशन मैनेजमेंट- ए प्रपोजल′ नाम से रिसर्च पेपर लिखा। इसमें उन्होंने हाइपरटेक्स्ट और इंटरनेट को एक साथ जोड़ दिया। इससे सर्न का कम्यूनिकेशन सिस्टम बेहतर बनाने में मदद मिली। मगर टिम का सोचना था कि इस सिस्टम का इस्तेमाल पूरी दुनिया में किया जा सकता है।
1990 में उन्होंने हाइपरटेक्स्ट के जरिये सूचना को अलग-अलग तरह के वेबकेंद्रो से जोड़ने और एक्सेस करने का प्रस्ताव रखा। 1991 में उन्होंने दुनिया की पहली वेबसाइट http://info.cern.ch लॉन्च की। इस पर वर्ल्ड वाइड वेब कांसेप्ट के बारे में पूरी जानकारी दी गई थी, जिससे कोई भी यूजर अपनी वेबसाइट शुरू कर सकता था। टिन बर्नर्स ली को HTML, URL, HTTP जैसी तकनीकों के फंडामेंटल लिखने का श्रेय भी जाता है।
आगे की राह
1994 में टिम ने मैसाचुसेटस् इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में वर्ल्ड वाइड वेब कंसोर्टियम (W3C) की स्थापना की। यह वर्ल्ड वाइड वेब के लिए काम करने वाली इंटरनेशल स्टैंडर्ड ऑर्गेनाइजेशन है। इसकी स्थापना टिम बर्नर्स ने वेब की देखरेख और उसे आगे ले जाने के लिए की।
काम, नाम और सम्मान
अपनी उपलब्धियों के लिए सर टिम को अब तक कई पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है। इनमें से साल 2013 में इंजीनियरिंग के लिए मिला पहला क्वीन एलिजाबेथ पुरस्कार और सन् 2004 में मिली नाइटहुड की उपाधि बेहद खास हैं। टिम को दस से ज्यादा मानद डॉक्टरेट की उपाधियां भी मिल चुकी हैं।
साल 2009 में ′वर्ल्ड वाइड वेब फाउंडेशन′ की स्थापना की। यह शिक्षा की दिशा में भी काम करती है। टिम को टाइम मैगजीन में बीसवीं सदी के महत्वपूर्ण लोगों की सूची में भी शामिल किया गया है।
काम, नाम और सम्मान
अपनी उपलब्धियों के लिए सर टिम को अब तक कई पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है। इनमें से साल 2013 में इंजीनियरिंग के लिए मिला पहला क्वीन एलिजाबेथ पुरस्कार और सन् 2004 में मिली नाइटहुड की उपाधि बेहद खास हैं। टिम को दस से ज्यादा मानद डॉक्टरेट की उपाधियां भी मिल चुकी हैं।
साल 2009 में ′वर्ल्ड वाइड वेब फाउंडेशन′ की स्थापना की। यह शिक्षा की दिशा में भी काम करती है। टिम को टाइम मैगजीन में बीसवीं सदी के महत्वपूर्ण लोगों की सूची में भी शामिल किया गया है।
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